Tirupati Balaji Story In Hindi Part 2 | Tirupati Balaji Ki Kahani Part 2

      

Tirupati Balaji Story In Hindi Part-02

तिरुपति बालाजी की कहानी भाग 02


नोट - भक्तों अगर आप तिरुपति बालाजी की कहानी भाग 1 के आर्टिकल नहीं पढ़े हैं तो, नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करके इस कहानी के भाग 1. आर्टिकल को पहले पढ़ ले,

तो आइये भक्तों तिरुपति बालाजी की आगे की कहानी को भाग 2 मे हम जान लेते हैं।

भक्तों भृगु ऋषि द्वारा भगवान विष्णु की छाती पर  लात मारने की इस घटना ने माता लक्ष्मी को क्रोधित कर दिया, 

भक्तो वह चाहती थीं कि भगवान विष्णु  ऋषि भृगु को दंडित करें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ परिणामस्वरूप उन्होंने वैकुंठ को छोड़ दिया और  तपस्या करने के लिए करवीरापुरा की धरती पर आ गई और तपस्या करना शुरू कर दिया। 

(जो उस वक्त भक्तो  करवीरापुर नाम से जाना जाता था आज उसे महाराष्ट्र में कोल्हापुर के नाम से जाना जाता है)


1. इधर भगवान विष्णु  माता लक्ष्मी जी के वेकुंड छोड़कर जाने पर बहूत दुखी थे और उन्होंने माता लक्ष्मी की तलाश में एक दिन  वैकुंठ को छोड़ दिया और धरती पर विभिन्न जंगलों और पहाड़ियों में माता लक्ष्मी की खोज में भटकने लगे,

लेकिन उसके बावजूद भी माता लक्ष्मी को खोज नही पा रहे थे और परेशान होकर भगवान विष्णु जी वेंकटाद्री  पर्वत में एक चींटी के आश्रय में माता लक्ष्मी के ध्यान करने का मन बनाया।

उसके बाद विष्णु जी चींटीयो के सरदार से जा मिले, और चींटीयो के बिल में थोडी़शी जगह मांगी। 



चींटीयो ने भगवान विष्णु  का हाथ जोर कर स्वागत कीया, और चींटीयो ने अपना एक आश्रय खाली कर दीया,

जिसमे विष्णु प्रवेश कर गये और भगवन ने खाना-पीना और नींद त्‍याग कर माता लक्ष्‍मी को वापस बुलाने के लिये ध्‍यान करने लगे।


2. इधर भगवान विष्णु को भुखे प्यासे और परेशान देखकर भगवान शिव और भगवान ब्रम्हा ने भगवान विष्णु की  मदद करने का फैसला किया।

भक्तों इस समस्या को सुलझाने के लिए भगवान ब्रह्मा और भगवान शिवजी माता  लक्ष्मी जी के पास पहुचे,

और बोले हे माता लक्ष्मी आप के याद मे भगवान विष्णु ने अन और जल त्याग कर,  आपके ध्यान मे मग्न है।

और ब्रह्मा जी ने अपनी शक्तियो से एक गाय को प्रगट कीया,और माता लक्ष्मी से बोले की हे देवी कैसे भी करके इस गाय को चोल राजा के पास पहुचा दिजीए,

भक्तों यह सुन माता लक्ष्मी गोवालन का  रुप धारन कीया,और गाय को लेकर चोल राजा के दरबार में जा पहुँची, 

और चोल राजा से बोली= मैं अभी इस गाय के पालन पोसन करने में असमर्थ हु। अतः इस गाय को आप के दरबार में चरवाहे के पास छोड़ना चाहती हु। 

उस गाय को सत्तारूढ़ चोल राजा ने अपने दरबार के चरवाहे को सौप दिया, 


3. चरवाहा गाय चराने उसी जंगल जाता था, जहा चींटीयो के बिल में विष्णु जी ध्यान मे मग्न थे। लेकिन वह गाय रोज चरवाहा से नजर बचाते हुए रोज उसी बिल में दूध निकाल देती थी।

यह देख श्री विष्णु जी उस दूध से अपनी भूख और प्यास शान्त करते थे।

चरवाहे भी ये सब रोज देखता, की ये गाय एक ही स्थान पर दुध निकाल देती हैं।

एक दिन गाय की सभी बाते राजा को बताया, की ये  गाय एक ही स्थान पर दुध की धार छोड़ देती है, 

भक्तों यह सुन राजा और चरवाहा उस स्थान पर पहुंच कर, गाय को चींटी के आश्रय के पास छोर दिये,और गाय पर नजर रखने लगे,

गाय अपनी समय पर चींटी के आश्रय मे दुध देने लगी, राजा और  चरवाहा समझ न सके की ये गाय चींटी के आश्रय मे दुध क्यो देती है, 

परेशान होकर चरवाहे ने उस गाय की तरफ  कुल्हाडी फेंकी। लेकिन तभी भगवान विष्णु प्रकट हुए और वो कुल्हाडी उनकी माथे पर लगी।



(भक्तो आपको ये  भी मालुम होनी चाहीये की कुल्हाड़ी से लगी उस चोट का निशान आज भी भगवान वेंकटेश्वर की मूर्तियों में  कायम हैं। कभी आप त्रिरुपती बालाजी जाए तो आप ये निसान अवस्य देखे)


4. गाय को चोट पहुचाने को लेकर  विष्णु जी बहुत क्रोधित हुए, चरवाहा विष्णुजी के क्रोधित रूप देखकर प्राण त्याग दिया,

इससे क्रोधित  होकर श्री विष्णु जी चरवाहे के मालीक चोल राजा को एक राक्षस के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया।

यह बात सुन कर राजा भगवान विष्णु से माफी मांगी।

राजा की प्रार्थना सुनकर,श्री विष्णु ने कहा= कि हे राजन ईस श्राप मुक्ती तब मिलेगी जब तुम राक्षस कुल में अक़सा राजा के रूप में पैदा होगे। और अपनी बेटी पद्मावती का विवाह श्रीनिवास  के साथ करेंगे। 

उसके बाद विष्णु जी वराह के पर्वत पर सरन ली और श्रीनिवस का रूप धारन कर वराह में रहने  लगे।


और इधर माता लक्ष्मी पताल लोक मे जाकर रहने लगी,

तो भक्तों श्री निवास और पद्मावती और साथ मे आकाश राजन  के कहानी को हम इस आर्टिकल के भाग 3 मे बतायेगे

नीचे दी गई आर्टिकल आइकन पर क्लिक करके भाग-3 आर्टिकल पढ़ सकते हैं,

🚩इसी के साथ भक्तो तिरूपति बालाजी आप सभी की मनोकामना पूर्ण  करें, तो मिलते हैं भक्तो इस कहानी के आर्टिकल भाग-2 मे🙏 Vinod Gupta 

Click▶️ तिरुपति बालाजी की कहानी भाग 1


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नोट-इस चैनल पर दिखाई गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Dharmasthala Yatra Gyan इनकी पुष्टि नहीं करता है।)

Tirupati Balaji Ki Kahani Part 1 | Tirupati Balaji Story In Hindi Part-1

तिरुपति बालाजी की कहानी भाग-1


भक्तों तिरूपति बालाजी मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है, यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है, 

भक्तो त्रिरूमाला की पहाड़ियों पर बना है यह मंदिर,

कई शताब्दी पूर्व बना ये मंदिर दक्षिण भारतीय  वास्तुकला और शिलपकला का अधभूत उदाहरन है, 

तो आइए भक्तो ईस आर्टिकल के जरिये,

त्रिरुपति बालाजी मंदिर की स्थापना  कैसे हुई इस कहानी के माध्यम से हम जान लेते हैं,

सागर मंथन


भक्तों प्रसिद्ध पौराणिक सागर मंथन की  कथा के अनुसार जब सागर मंथन किया गया था,

तब कालकुट विष के अलावा 14 रत्न निकले थे, भक्तो इन  रत्नों में से एक देवी लक्ष्मी भी थी, 

लक्ष्मी के इस भव्य रूप और सुंदरता देखकर सारे देवता दैत्य और मनुष्य उनसे विवाह करने हेतु लालाईत थे, 

किंतु देवी लक्ष्मी को उन सब में कोई न कोई कमी  दिखाई दि, अतः उन्होंने समिप निर्पक्षभाव से खड़े हुए विष्णु के गले में वरमाला पहना दी, 

लक्ष्मी विष्णु वरमाला


विष्णु जी ने  लक्ष्मी जी को अपने हृदय में स्थान दिया,

भक्तो एक बार धरती पर विश्व कल्याण हेतु यज्ञ का आयोजन किया गया,

भक्तों तब समस्या उठी की यज्ञ का फल ब्रह्मा विष्णु महेश में से कीसे अर्पित किया जाए, ब्रह्मा  विष्णु महेश में से सर्वाधिक श्रेष्ट कौन है ?

भक्तों यह चयन करने के लिए ऋषि भृगु को सौंपा गया, 

यह कार्य करने के लिए ऋषि भृगु सबसे पहले ब्रह्मलोक पहुंचे किंतु ब्रह्मा जी को भी यज्ञ फल के लिए लायक  नहीं समझा, 

उसके बाद भक्तों ऋषि भृगु कैलाश पहुंचे किंतु शिवजी को भी यज्ञ फल हेतु योग नहीं पाया, 



अंत में भक्तो ऋषि भृगु विष्णु लोक पहुंचे, विष्णु जी शेष शैया पर लेटे हुए थे, और उनकी दृष्टि ऋषि भृगु पर नहीं जा पाई,

भृगु ऋषि ने आवेश में आकर बिष्णु जी के छाती पर लात से ठोकर मार दी, 

यानी भक्तो श्री लक्ष्मी  जी के निवास स्थान पर ऋषि ने अपने पैरों से ठोकर मार दये, यह देख माता लक्ष्मी को मन ही मन में बहुत  क्रोध आया, 

लेकिन भक्तों विष्णु जी ने शांत भाव से ऋषि भृगु का पावं पकड़ लिया और नर्म वचन में बोले हे  रिसीवर आपके कोमल पांव में चोट तो नहीं आई, 

भक्तों विष्णु जी के व्यवहार से खुश भृगु ऋषि ने यज्ञ  फल का श्रेष्ठ पात्र विष्णु जी को घोषित कर दिया,और ऋषि भृगु विष्णु लोक से धरती लोक पर आकर यज्ञ में  शामिल हो गए, 



इधर भृगु ऋषि के जाते ही माता लक्ष्मी जी क्रोध स्वर मे विष्णु जी से बोली, 

हें स्वामी मेरे  निवास स्थान पर धरती वासी भृगु को ठोकर लगाने का अधिकार किसने दिया, और आप भृगु को डन्दीत करने  की अपेक्क्षा उनसे उल्टा क्षमा क्यो मांगी, 

लेकीन भक्तों माता लक्ष्मी जी के सवाल का विष्णु जी  के पास कोई जवाब नहीं था, और विष्णु जी मौन रहकर शैया पर लेटे रहे,

परिणाम स्वरूप लक्ष्मी जी विष्णु जी को त्याग कर चली गई,

भक्तो विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को बहुत डून्ढा किंतु वे नहीं मिली और  विष्णु जी को लगा कि धरती लोक पर तो माता लक्ष्मी नहीं चली गई, 

यह सोचकर भक्तो विष्णु जी लक्ष्मी जी  को ढूंढते हुए धरती लोक पर श्रीनिवास के नाम से अपनी पहचान बनाई और धरती पर माता लक्ष्मी एक राजा के घर पर जन्म ली, जो पद्मावती के नाम से अपना पहचान बनाई, 

 धरती पर जन्म


भक्तो विष्णु जी और लक्ष्मी जी के धरती की जन्म की कहानी इस आर्टिकल के भाग -2 में लिखे है, 

नीचे दी गई आर्टिकल आइकन पर क्लिक करके वह आर्टिकल पढ़ सकते हैं,

और जानेगे तिरूपति बालाजी के मंदिर के स्थापना की कहानी को आर्टिकल भाग 2 के माध्यम से।

🚩इसी के साथ भक्तो तिरूपति बालाजी आप सभी की मनोकामना पूर्ण  करें, तो मिलते हैं भक्तो इस कहानी के आर्टिकल भाग-2 मे🙏 Vinod Gupta 

Click▶️तिरुपति बालाजी की कहानी भाग 2


Click▶️तिरुपति बालाजी की कहानी भाग 3

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(नोट-इस चैनल पर दिखाई गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Dharmasthala Yatra Gyan इनकी पुष्टि नहीं करता है।)

 

Kinnar Laila Baee Kee Jhaadoo Ka Chamatkaar | Baageshvar Bhaam Jaisa | Balaji Mandir

 

किन्नर लैला बाई की झाड़ू का चमत्कार बागेश्वर धाम जैसा


भक्तों हिंदू धर्म की मान्यताओं और मत्स्य पुराण के अनुसार झाड़ू को श्री माता लक्ष्मी जी का प्रतीक माना जाता है।
और बृहद संहिता में झाड़ू को सुख संपत्ति बढ़ाने और घर से दरिद्रता हटाने वाली वास्तु माना गया है।

लेकिन भक्तों इस आर्टिकल के मध्य से आपको बताने जा रहे हैं, 

एक ऐसा चमत्कारी हनुमान मंदिर जहां झाड़ू से झाड़ू लगाया जाता है। और तीन दिन के झाड़ा लगाने से सभी तरह के बिमारी वो कष्टो को दूर किया जाता है। 
तो चलिए भक्तों इस मंदिर के बाड़े में हम इस आर्टिकल के मध्य से विस्तार से जान लेते हैं।


मंदिर तक कैसे पहुँचें

भक्तों भारत में श्री राम भक्त हनुमान जी के कई चमत्कारिक मंदिर है। 
जहां हनुमान जी विभिन्न रूपन में विराजमान है। 
लेकिन भक्तों राजस्थान के जयपुर जिले से 25 किलोमीटर और निंदर बैनर रेलवे स्टेशन से करीब 9 किलोमीटर की दूरी पर खोरा बिसल होते हुए जयरामपूरा रोड पर दत्तावता मोर के पास एक ऐसा चमत्कारी हनुमान मंदिर है।
जहां झाड़ू से झाड़ा लगाने वाला हनुमान मंदिर के नाम से काफी प्रसिद्ध है। 

मंदिर का निर्माण

भक्तों आपको यह भी बता दें की इस मंदिर का निर्माण करने वाली कीन्नर के गुरु माता गुरु श्री बाई वो रेखा उर्फ लैला बाई ने 9/12/2021 को इस मंदिर का निर्माण करवाया है।
वह भी भक्तों बिना किसी के चंदा लिए बिना किसी के मदद के, केवल गुरु श्री बाई की जमा पूंजी से यह मंदिर का निर्माण किया गया। इसीलिए भक्तों गुरु श्री बाई चमत्कारिक हनुमान मंदिर तथा लैलाबाई चमत्कारिक हनुमान मंदिर के नाम से भी इस मंदिर को जाना जाता है। 


मंदिर में उपचार के नियम

भक्तों यहां किन्नर लैला बाई झाड़ू से झाड़ा लगाती है, और गंभीर से गंभीर बिमारियों का दवाई भी फ्री देती है। श्रद्धालुओं को तीन दिन झड़ा लगाना पड़ता है। तीन झाड़ा लगते ही हर तरह के बिमारी वो दुख: दर्द दूर हो जाते हैं। 
यानी भक्तों किसी भी बीमारी को ठीक करने के लिए इस मंदिर में आपको तीन रविवार झाड़ा लगवाने आना ही पड़ेगा। 


झाड़ा लगने का समय सीमा

भक्तों आपको यह भी बता दे की यहां हर रविवार को लाखों दुखी श्रद्धालुओं की भिड़ उमरती है। 
क्योंकि केवल रविवार को ही किन्नर लैला दीदी सुबह 11:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक झाड़ा लगती है।
भक्तों आपको यह भी बता दे की शाम की आरती के बाद झाड़ा नहीं लगाया जाते। 
भक्तों कभी-कभी भीड़ इतनी हो जाति है की श्री लैला बाई को लाइन में खड़े श्रद्धालुओं को लाइन में ही झाड़ा लगाना पड़ता है। 
भक्तों लैला दीदी मंगलवार को भी एक दो घंटे झाड़ा लगती है। 
मंगलवार को झाड़ा लगाने का कोई समय सीमा निश्चित नहीं की गई है। 

शनिवार सुबह से ही भीड़

भीड़ को देखते हुए श्रद्धालु गण शनिवार को ही देर रात आकर अपनी जगह यानी लाइन चिन्हित करते हैं। भक्तों इतना ही नहीं शनिवार सुबह से ही दुकानदार जैसे की? नारियल,अगरबत्ती,फूल,माला, मिठाई या चाय नाश्ता इत्यादि की अपनी अपनी दुकान लगानी शुरू कर देते हैं। भक्तों शायद यह देश का पहला ऐसा मंदिर है जहां हनुमान मंदिर में हनुमान जी की कृपा से किन्नर द्वारा झाड़ू से झाड़ा लगाया जाता है, और सभी भक्तों को सभी तरह के कष्ट से छुटकारा मिलता है। 
भक्तों इस मंदिर में कौन-कौन सी बिमारी का इलाज होता है हम अगले आर्टिकल में बताएंगे जब तक इस वेबसाइट को फ्लो करके रखें। 


झाड़ू और हनुमानजी के कृपा 

भक्तों आपको आर्टिकल के लास्ट में यह भी बता दें की घर की साफ सफाई करने के साथ-साथ ऐसा माना जाता है की,घर में प्रतिदिन समय पर झाड़ू लगाने से घर में सुख समृद्धि का वास होता है,
और घर में सभी प्रकार के कष्ट और नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाति है। 
तो भक्तों किसी भी दुखों को दूर करने के लिए झाड़ू से झाड़ू क्यों नहीं लगाई जा सकती वो भी हनुमान जी के कृपा के साथ 
🚩इसी के साथ भक्तों हनुमान जी आप सभी भक्तों को सभी तरह के कष्टो से दूर रखें
🙏 Vinod Gupta 


Click▶️ मेहंदीपुर बालाजी की कहानी भाग 2


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(नोट-इस चैनल पर दिखाई गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Dharmasthala Yatra Gyan इनकी पुष्टि नहीं करता है।)

Mehandipur Balaji Ki Kahani Part-1 | How Was Mehndipur Balaji Established Part 1

 

मेहंदीपुर बालाजी की कहानी भाग -1 | Mehandipur Balaji Ki Kahani Part 1

भक्तों राजस्थान के श्री मेहंदीपुर बालाजी धाम में भूत प्रेत और ऊपरी बधाओ से ग्रसित व्यक्ति श्री बालाजी एवं प्रेतराज सरकार और श्री कप्तान भैरव के कृपा से ठीक हो जाते हैं।

तो भक्तों क्या आप इस मंदिर निर्माण और श्री बालाजी प्रेतराज सरकार और कप्तान भैरव यहां पर विराजमान कैसे हुए यह जानना चाहते हैं तो इस  आर्टिकल में बने रहने के साथ-साथ इस कहानी के सभी भाग को पढ़ना ना भूलें।

तो आईये भक्तों श्री बालाजी के जयकारा बोलते हुए इस कहानी को हम पढ़कर  जान लेते है।




Story Of Mehandipur Balaji In Hindi


भक्तों श्री मेहंदीपुर बालाजी मंदिर का इतिहास के बात करें तो करीब 1000 साल से पहले यहां पर घोर घंना जंगल हुआ करता था।

चारो तरफ फैली हुई घनी झाड़ियों में जंगली जानवरों का बसेरा हुआ करता था।

भक्तों एक दिन की बात है एक दिन श्री मंहत जी महाराज के पूर्वज गोसाईजी को सपना आया और सपने की अवस्था में ही वे उठ कर चल दिए।

उन्हें पता नहीं था कि वे कहाँ जा रहे है? चलते चलते भक्तों वे घने जंगल से घिरे पहाडिंयो के बिच पहुचं गये।

और भक्तों इसी दौरान उन्होंने एक बेहद विचित्र लीला देखी की एक ओर से हजारों दीपक जलते और चलते आ रहे थे।

हाथी घोड़े की तेज आवाज के साथ एक बहुत बड़ी फौज चली आ रही थी।

भक्तों उस फौज ने पहाड़ की घाटी पर रुक कर वहा विराजमान श्री बालाजी महाराज की मूर्ति के चारो ओर तीन बार घुमकर प्रनाम कीया।

और फौज के प्रधान ने नीचे उतरकर श्री बालाजी महाराज को दण्डवत प्रणाम किया।

तथा जिस रास्ते से वे आए थे उसी रास्ते से चले गए।

भक्तों गोसाई जी महाराज चकित होकर यह सब देखते ही रह गए।

उन्हें कुछ डर सा लगा और वे वहा से भागते हुये अपने घर को आ गए।

और गोसाइजी महाराज अपने विस्तर पर सोने की कोशीस करने लगे।

किन्तु उन्हें नींद नहीं आ रही थी कीयोकी उनके मन में बार-बार वही चित्र सामने आ रहे थे।

तो भक्तो इसी विषय पर विचार करते हुए गोसाईजी के जैसे ही आँखें लगी उन्हें सपने में तीन मूर्तिया दिखाइ दी। और उनके कानों में यह आवाजे आई “उठो, मेरी सेवा का भार ग्रहण करो मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करूंगा“ यह बात कौन कह रहा था ये कोई दिखाई नहीं पड़ा।

भक्तों गोसाई जी को यह बात समझ में नही आइ की अजीब सा सपना मुझे क्यो दिखाई दिया।

भक्तों गोसाई जी ने सपना समझ कर इन बातों पर ध्यान नहीं दिया।




Mehandipur Balaji Kaise prakat hue the | मेहंदीपुर बालाजी कैसे प्रकट हुए थे

Mehandipur Balaji Ki Kahani Part - 2 | How Was Mehndipur Balaji Established Part 2


मेहंदीपुर बालाजी की कहानी भाग 2 | Mehandipur Balaji Ki Kahani Part 2


भक्तों श्री मेहंदीपुर बालाजी के कहानी के भाग एक में आपने अब तक पढा़। कि गोसाई जी को सपना आया सपने के अनुसार गोसाई जी बालाजी के प्रतिमा तक पहुंचे। और भक्तों  आसपास के लोगों को इकट्ठा किया और लोगों की मदद से श्री बालाजी की छोटी सी तिवारी बनाकर श्री गुसाईं जी पूजा-अर्चना करने लगे। भक्तों इस कहानी के भाग दो पढ़ने से पहले इस website पर आप नये है तो follow कर लीजिए।



Story Of Mehandipur Balaji In Hindi

भक्तों श्री मेहंदीपुर बालाजी के स्थापना के बाद श्री गोसाईजी अस्थाई रूप से पूजा अर्चना करने लगे।

लेकिन कुछ दिनों के बाद कुछ कपटी और दुष्ट लोगों ने इसे ढोंग माना। 

तो बालाजी महाराज की प्रतिमा उन कपटी लोगो के सामने ही जहाँ से निकाली थी वह मूर्ति  फिर से वहीं लुप्त हो गई।

फिर लोगों ने श्री बाला जी महाराज से क्षमा मांगी तो वो मूर्तियाँ दिखाई 

देने लगी। 

यह देख सभी लोगों ने बालाजी की शक्ति को माना और गोसाई जी पर विश्वास किया। 

भक्तों आपको यह भी बता दे की--

गोसाई जी जंगली जानवरों को मंदिर से दूर रखने के लिए एक पेड़ के टहनी के सहारे घंटा लटका दि और समय समय पर बजाया करते थे।

इसीलिए गोसाईजी को कुछ लोग घंटे वाले बाबा जी के नाम से भी बुलाने लगे थे। 



Mehandipur Balaji Ka Chamatkar 

 मेहंदीपुर बालाजी का चमत्कार

भक्तों उस समय किसी राजपुत राजा का राज्य चल रहा था। 

गोसाई जी ने राजा को अपने सपने और बालाजी के बारे में बताने का निश्चय किया। 

गोसाई जी राजा को अपने सपने की बात बताई। राजा को यकीन नही हुआ 

और राजा बालाजी के चबूतरे पर पहुंचे और राजा ने मूर्ति को देखकर कहा ये कोई कला है। 

राजा के यह बात बोलते ही बालाजी की मूर्ति जमीन के अन्दर चली गयी। तो राजा ने खुदाई करवायी तब भी मूर्ति का कोई पता नही चला।

तब राजा ने हार मानकर बाबा से क्षमा मांगी और कहा 

हे श्री बाला जी महाराज हम मूर्ख हैं हम आपकी शक्ति को नही पहचान पाये हमें अज्ञानी समझ कर क्षमा कर 

दिजीये। राजा के क्षमा मांगते ही बालाजी महाराज की मूर्तियाँ बाहर आई।

Mehandipur Balaji Ka Jal | मेहंदीपुर बालाजी का जल

मूर्तियाँ बाहर आने के बाद राजा ने श्री बालाजी के चरन कमलों को अपने हाथ से पकड़ लिया। 

राजा ने देखा की मुर्ती पानी से गीली है। 

जैसे ही वह पानी राजा के हाथ मे लगी राजा के शरीर की सारे कष्ट दुर हो गये। 

भक्तों जब राजा ने गोसाई जी महाराज की बातों पर यकीन किया,और महंत गोसाई जी से बोले-

की हें गोसाई जी महाराज मेरे वजह से श्री बालाजी के चबूतरे को तोड़ा गया इसीलिए श्री बालाजी क मंदिर बनवाने वचन देता हूं और आपको बालाजी की पूजा का भार ग्रहण करने की आज्ञा देता हु। 

यह कहते हुए राजा वहा से चले गए। महंत गोसाई जी ने श्री बालाजी के मूर्ति को चारों तरफ से देखा की आखिर पानी का रिझाओ कहां से आ रहा है। 

श्री बालाजी महाराज के ह्रदय के पास एक छेद से एक बारिक जलधारा लगातार बहती जा रही थी 

गोसाई जी ने जलधारा को रोकने की बहुत कोशिश की मगर जलधारा नहीं रुका। 

तो गोसाई जी श्री बालाजी का चमत्कार समझ कर उसे बहने दिया।

(भक्तों आज उसी जलधारा के छिटें भक्तजनों को लगाया जाता है) 

इसके आगे की कहानी Mehandipur Balaji Mandir Nirman की कहानी हम इस पोस्ट के भाग-3 में बताये है। उस पोस्ट को पढे़✔️ Vinod Gupta

🚩तो प्रेम से बोलें और कमेंट में लिखे जय श्री बालाजी महाराज🙏

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(श्री बालाजी महाराज आप सभी के दुखों को दूर करें) 🙏🙏🙏🙏🙏

(नोट-Disclaimer: इस चैनल पर दिखाई गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Dharmasthala Yatra Gyan इनकी पुष्टि नहीं करता है।)