Tirupati Balaji Ki Kahani Part 1 | Tirupati Balaji Story In Hindi Part-1

तिरुपति बालाजी की कहानी भाग-1


भक्तों तिरूपति बालाजी मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है, यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है, 

भक्तो त्रिरूमाला की पहाड़ियों पर बना है यह मंदिर,

कई शताब्दी पूर्व बना ये मंदिर दक्षिण भारतीय  वास्तुकला और शिलपकला का अधभूत उदाहरन है, 

तो आइए भक्तो ईस आर्टिकल के जरिये,

त्रिरुपति बालाजी मंदिर की स्थापना  कैसे हुई इस कहानी के माध्यम से हम जान लेते हैं,

सागर मंथन


भक्तों प्रसिद्ध पौराणिक सागर मंथन की  कथा के अनुसार जब सागर मंथन किया गया था,

तब कालकुट विष के अलावा 14 रत्न निकले थे, भक्तो इन  रत्नों में से एक देवी लक्ष्मी भी थी, 

लक्ष्मी के इस भव्य रूप और सुंदरता देखकर सारे देवता दैत्य और मनुष्य उनसे विवाह करने हेतु लालाईत थे, 

किंतु देवी लक्ष्मी को उन सब में कोई न कोई कमी  दिखाई दि, अतः उन्होंने समिप निर्पक्षभाव से खड़े हुए विष्णु के गले में वरमाला पहना दी, 

लक्ष्मी विष्णु वरमाला


विष्णु जी ने  लक्ष्मी जी को अपने हृदय में स्थान दिया,

भक्तो एक बार धरती पर विश्व कल्याण हेतु यज्ञ का आयोजन किया गया,

भक्तों तब समस्या उठी की यज्ञ का फल ब्रह्मा विष्णु महेश में से कीसे अर्पित किया जाए, ब्रह्मा  विष्णु महेश में से सर्वाधिक श्रेष्ट कौन है ?

भक्तों यह चयन करने के लिए ऋषि भृगु को सौंपा गया, 

यह कार्य करने के लिए ऋषि भृगु सबसे पहले ब्रह्मलोक पहुंचे किंतु ब्रह्मा जी को भी यज्ञ फल के लिए लायक  नहीं समझा, 

उसके बाद भक्तों ऋषि भृगु कैलाश पहुंचे किंतु शिवजी को भी यज्ञ फल हेतु योग नहीं पाया, 



अंत में भक्तो ऋषि भृगु विष्णु लोक पहुंचे, विष्णु जी शेष शैया पर लेटे हुए थे, और उनकी दृष्टि ऋषि भृगु पर नहीं जा पाई,

भृगु ऋषि ने आवेश में आकर बिष्णु जी के छाती पर लात से ठोकर मार दी, 

यानी भक्तो श्री लक्ष्मी  जी के निवास स्थान पर ऋषि ने अपने पैरों से ठोकर मार दये, यह देख माता लक्ष्मी को मन ही मन में बहुत  क्रोध आया, 

लेकिन भक्तों विष्णु जी ने शांत भाव से ऋषि भृगु का पावं पकड़ लिया और नर्म वचन में बोले हे  रिसीवर आपके कोमल पांव में चोट तो नहीं आई, 

भक्तों विष्णु जी के व्यवहार से खुश भृगु ऋषि ने यज्ञ  फल का श्रेष्ठ पात्र विष्णु जी को घोषित कर दिया,और ऋषि भृगु विष्णु लोक से धरती लोक पर आकर यज्ञ में  शामिल हो गए, 



इधर भृगु ऋषि के जाते ही माता लक्ष्मी जी क्रोध स्वर मे विष्णु जी से बोली, 

हें स्वामी मेरे  निवास स्थान पर धरती वासी भृगु को ठोकर लगाने का अधिकार किसने दिया, और आप भृगु को डन्दीत करने  की अपेक्क्षा उनसे उल्टा क्षमा क्यो मांगी, 

लेकीन भक्तों माता लक्ष्मी जी के सवाल का विष्णु जी  के पास कोई जवाब नहीं था, और विष्णु जी मौन रहकर शैया पर लेटे रहे,

परिणाम स्वरूप लक्ष्मी जी विष्णु जी को त्याग कर चली गई,

भक्तो विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को बहुत डून्ढा किंतु वे नहीं मिली और  विष्णु जी को लगा कि धरती लोक पर तो माता लक्ष्मी नहीं चली गई, 

यह सोचकर भक्तो विष्णु जी लक्ष्मी जी  को ढूंढते हुए धरती लोक पर श्रीनिवास के नाम से अपनी पहचान बनाई और धरती पर माता लक्ष्मी एक राजा के घर पर जन्म ली, जो पद्मावती के नाम से अपना पहचान बनाई, 

 धरती पर जन्म


भक्तो विष्णु जी और लक्ष्मी जी के धरती की जन्म की कहानी इस आर्टिकल के भाग -2 में लिखे है, 

नीचे दी गई आर्टिकल आइकन पर क्लिक करके वह आर्टिकल पढ़ सकते हैं,

और जानेगे तिरूपति बालाजी के मंदिर के स्थापना की कहानी को आर्टिकल भाग 2 के माध्यम से।

🚩इसी के साथ भक्तो तिरूपति बालाजी आप सभी की मनोकामना पूर्ण  करें, तो मिलते हैं भक्तो इस कहानी के आर्टिकल भाग-2 मे🙏 Vinod Gupta 

Click▶️तिरुपति बालाजी की कहानी भाग 2


Click▶️तिरुपति बालाजी की कहानी भाग 3

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(नोट-इस चैनल पर दिखाई गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Dharmasthala Yatra Gyan इनकी पुष्टि नहीं करता है।)

 

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