Tirupati Balaji Story In Hindi Part 2 | Tirupati Balaji Ki Kahani Part 2

      

Tirupati Balaji Story In Hindi Part-02

तिरुपति बालाजी की कहानी भाग 02


नोट - भक्तों अगर आप तिरुपति बालाजी की कहानी भाग 1 के आर्टिकल नहीं पढ़े हैं तो, नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करके इस कहानी के भाग 1. आर्टिकल को पहले पढ़ ले,

तो आइये भक्तों तिरुपति बालाजी की आगे की कहानी को भाग 2 मे हम जान लेते हैं।

भक्तों भृगु ऋषि द्वारा भगवान विष्णु की छाती पर  लात मारने की इस घटना ने माता लक्ष्मी को क्रोधित कर दिया, 

भक्तो वह चाहती थीं कि भगवान विष्णु  ऋषि भृगु को दंडित करें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ परिणामस्वरूप उन्होंने वैकुंठ को छोड़ दिया और  तपस्या करने के लिए करवीरापुरा की धरती पर आ गई और तपस्या करना शुरू कर दिया। 

(जो उस वक्त भक्तो  करवीरापुर नाम से जाना जाता था आज उसे महाराष्ट्र में कोल्हापुर के नाम से जाना जाता है)


1. इधर भगवान विष्णु  माता लक्ष्मी जी के वेकुंड छोड़कर जाने पर बहूत दुखी थे और उन्होंने माता लक्ष्मी की तलाश में एक दिन  वैकुंठ को छोड़ दिया और धरती पर विभिन्न जंगलों और पहाड़ियों में माता लक्ष्मी की खोज में भटकने लगे,

लेकिन उसके बावजूद भी माता लक्ष्मी को खोज नही पा रहे थे और परेशान होकर भगवान विष्णु जी वेंकटाद्री  पर्वत में एक चींटी के आश्रय में माता लक्ष्मी के ध्यान करने का मन बनाया।

उसके बाद विष्णु जी चींटीयो के सरदार से जा मिले, और चींटीयो के बिल में थोडी़शी जगह मांगी। 



चींटीयो ने भगवान विष्णु  का हाथ जोर कर स्वागत कीया, और चींटीयो ने अपना एक आश्रय खाली कर दीया,

जिसमे विष्णु प्रवेश कर गये और भगवन ने खाना-पीना और नींद त्‍याग कर माता लक्ष्‍मी को वापस बुलाने के लिये ध्‍यान करने लगे।


2. इधर भगवान विष्णु को भुखे प्यासे और परेशान देखकर भगवान शिव और भगवान ब्रम्हा ने भगवान विष्णु की  मदद करने का फैसला किया।

भक्तों इस समस्या को सुलझाने के लिए भगवान ब्रह्मा और भगवान शिवजी माता  लक्ष्मी जी के पास पहुचे,

और बोले हे माता लक्ष्मी आप के याद मे भगवान विष्णु ने अन और जल त्याग कर,  आपके ध्यान मे मग्न है।

और ब्रह्मा जी ने अपनी शक्तियो से एक गाय को प्रगट कीया,और माता लक्ष्मी से बोले की हे देवी कैसे भी करके इस गाय को चोल राजा के पास पहुचा दिजीए,

भक्तों यह सुन माता लक्ष्मी गोवालन का  रुप धारन कीया,और गाय को लेकर चोल राजा के दरबार में जा पहुँची, 

और चोल राजा से बोली= मैं अभी इस गाय के पालन पोसन करने में असमर्थ हु। अतः इस गाय को आप के दरबार में चरवाहे के पास छोड़ना चाहती हु। 

उस गाय को सत्तारूढ़ चोल राजा ने अपने दरबार के चरवाहे को सौप दिया, 


3. चरवाहा गाय चराने उसी जंगल जाता था, जहा चींटीयो के बिल में विष्णु जी ध्यान मे मग्न थे। लेकिन वह गाय रोज चरवाहा से नजर बचाते हुए रोज उसी बिल में दूध निकाल देती थी।

यह देख श्री विष्णु जी उस दूध से अपनी भूख और प्यास शान्त करते थे।

चरवाहे भी ये सब रोज देखता, की ये गाय एक ही स्थान पर दुध निकाल देती हैं।

एक दिन गाय की सभी बाते राजा को बताया, की ये  गाय एक ही स्थान पर दुध की धार छोड़ देती है, 

भक्तों यह सुन राजा और चरवाहा उस स्थान पर पहुंच कर, गाय को चींटी के आश्रय के पास छोर दिये,और गाय पर नजर रखने लगे,

गाय अपनी समय पर चींटी के आश्रय मे दुध देने लगी, राजा और  चरवाहा समझ न सके की ये गाय चींटी के आश्रय मे दुध क्यो देती है, 

परेशान होकर चरवाहे ने उस गाय की तरफ  कुल्हाडी फेंकी। लेकिन तभी भगवान विष्णु प्रकट हुए और वो कुल्हाडी उनकी माथे पर लगी।



(भक्तो आपको ये  भी मालुम होनी चाहीये की कुल्हाड़ी से लगी उस चोट का निशान आज भी भगवान वेंकटेश्वर की मूर्तियों में  कायम हैं। कभी आप त्रिरुपती बालाजी जाए तो आप ये निसान अवस्य देखे)


4. गाय को चोट पहुचाने को लेकर  विष्णु जी बहुत क्रोधित हुए, चरवाहा विष्णुजी के क्रोधित रूप देखकर प्राण त्याग दिया,

इससे क्रोधित  होकर श्री विष्णु जी चरवाहे के मालीक चोल राजा को एक राक्षस के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया।

यह बात सुन कर राजा भगवान विष्णु से माफी मांगी।

राजा की प्रार्थना सुनकर,श्री विष्णु ने कहा= कि हे राजन ईस श्राप मुक्ती तब मिलेगी जब तुम राक्षस कुल में अक़सा राजा के रूप में पैदा होगे। और अपनी बेटी पद्मावती का विवाह श्रीनिवास  के साथ करेंगे। 

उसके बाद विष्णु जी वराह के पर्वत पर सरन ली और श्रीनिवस का रूप धारन कर वराह में रहने  लगे।


और इधर माता लक्ष्मी पताल लोक मे जाकर रहने लगी,

तो भक्तों श्री निवास और पद्मावती और साथ मे आकाश राजन  के कहानी को हम इस आर्टिकल के भाग 3 मे बतायेगे

नीचे दी गई आर्टिकल आइकन पर क्लिक करके भाग-3 आर्टिकल पढ़ सकते हैं,

🚩इसी के साथ भक्तो तिरूपति बालाजी आप सभी की मनोकामना पूर्ण  करें, तो मिलते हैं भक्तो इस कहानी के आर्टिकल भाग-2 मे🙏 Vinod Gupta 

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नोट-इस चैनल पर दिखाई गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Dharmasthala Yatra Gyan इनकी पुष्टि नहीं करता है।)

Tirupati Balaji Ki Kahani Part 1 | Tirupati Balaji Story In Hindi Part-1

तिरुपति बालाजी की कहानी भाग-1


भक्तों तिरूपति बालाजी मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है, यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है, 

भक्तो त्रिरूमाला की पहाड़ियों पर बना है यह मंदिर,

कई शताब्दी पूर्व बना ये मंदिर दक्षिण भारतीय  वास्तुकला और शिलपकला का अधभूत उदाहरन है, 

तो आइए भक्तो ईस आर्टिकल के जरिये,

त्रिरुपति बालाजी मंदिर की स्थापना  कैसे हुई इस कहानी के माध्यम से हम जान लेते हैं,

सागर मंथन


भक्तों प्रसिद्ध पौराणिक सागर मंथन की  कथा के अनुसार जब सागर मंथन किया गया था,

तब कालकुट विष के अलावा 14 रत्न निकले थे, भक्तो इन  रत्नों में से एक देवी लक्ष्मी भी थी, 

लक्ष्मी के इस भव्य रूप और सुंदरता देखकर सारे देवता दैत्य और मनुष्य उनसे विवाह करने हेतु लालाईत थे, 

किंतु देवी लक्ष्मी को उन सब में कोई न कोई कमी  दिखाई दि, अतः उन्होंने समिप निर्पक्षभाव से खड़े हुए विष्णु के गले में वरमाला पहना दी, 

लक्ष्मी विष्णु वरमाला


विष्णु जी ने  लक्ष्मी जी को अपने हृदय में स्थान दिया,

भक्तो एक बार धरती पर विश्व कल्याण हेतु यज्ञ का आयोजन किया गया,

भक्तों तब समस्या उठी की यज्ञ का फल ब्रह्मा विष्णु महेश में से कीसे अर्पित किया जाए, ब्रह्मा  विष्णु महेश में से सर्वाधिक श्रेष्ट कौन है ?

भक्तों यह चयन करने के लिए ऋषि भृगु को सौंपा गया, 

यह कार्य करने के लिए ऋषि भृगु सबसे पहले ब्रह्मलोक पहुंचे किंतु ब्रह्मा जी को भी यज्ञ फल के लिए लायक  नहीं समझा, 

उसके बाद भक्तों ऋषि भृगु कैलाश पहुंचे किंतु शिवजी को भी यज्ञ फल हेतु योग नहीं पाया, 



अंत में भक्तो ऋषि भृगु विष्णु लोक पहुंचे, विष्णु जी शेष शैया पर लेटे हुए थे, और उनकी दृष्टि ऋषि भृगु पर नहीं जा पाई,

भृगु ऋषि ने आवेश में आकर बिष्णु जी के छाती पर लात से ठोकर मार दी, 

यानी भक्तो श्री लक्ष्मी  जी के निवास स्थान पर ऋषि ने अपने पैरों से ठोकर मार दये, यह देख माता लक्ष्मी को मन ही मन में बहुत  क्रोध आया, 

लेकिन भक्तों विष्णु जी ने शांत भाव से ऋषि भृगु का पावं पकड़ लिया और नर्म वचन में बोले हे  रिसीवर आपके कोमल पांव में चोट तो नहीं आई, 

भक्तों विष्णु जी के व्यवहार से खुश भृगु ऋषि ने यज्ञ  फल का श्रेष्ठ पात्र विष्णु जी को घोषित कर दिया,और ऋषि भृगु विष्णु लोक से धरती लोक पर आकर यज्ञ में  शामिल हो गए, 



इधर भृगु ऋषि के जाते ही माता लक्ष्मी जी क्रोध स्वर मे विष्णु जी से बोली, 

हें स्वामी मेरे  निवास स्थान पर धरती वासी भृगु को ठोकर लगाने का अधिकार किसने दिया, और आप भृगु को डन्दीत करने  की अपेक्क्षा उनसे उल्टा क्षमा क्यो मांगी, 

लेकीन भक्तों माता लक्ष्मी जी के सवाल का विष्णु जी  के पास कोई जवाब नहीं था, और विष्णु जी मौन रहकर शैया पर लेटे रहे,

परिणाम स्वरूप लक्ष्मी जी विष्णु जी को त्याग कर चली गई,

भक्तो विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को बहुत डून्ढा किंतु वे नहीं मिली और  विष्णु जी को लगा कि धरती लोक पर तो माता लक्ष्मी नहीं चली गई, 

यह सोचकर भक्तो विष्णु जी लक्ष्मी जी  को ढूंढते हुए धरती लोक पर श्रीनिवास के नाम से अपनी पहचान बनाई और धरती पर माता लक्ष्मी एक राजा के घर पर जन्म ली, जो पद्मावती के नाम से अपना पहचान बनाई, 

 धरती पर जन्म


भक्तो विष्णु जी और लक्ष्मी जी के धरती की जन्म की कहानी इस आर्टिकल के भाग -2 में लिखे है, 

नीचे दी गई आर्टिकल आइकन पर क्लिक करके वह आर्टिकल पढ़ सकते हैं,

और जानेगे तिरूपति बालाजी के मंदिर के स्थापना की कहानी को आर्टिकल भाग 2 के माध्यम से।

🚩इसी के साथ भक्तो तिरूपति बालाजी आप सभी की मनोकामना पूर्ण  करें, तो मिलते हैं भक्तो इस कहानी के आर्टिकल भाग-2 मे🙏 Vinod Gupta 

Click▶️तिरुपति बालाजी की कहानी भाग 2


Click▶️तिरुपति बालाजी की कहानी भाग 3

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(नोट-इस चैनल पर दिखाई गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Dharmasthala Yatra Gyan इनकी पुष्टि नहीं करता है।)